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Lalu के लाल की करारी हार! Mahua की जनता ने क्यों किया JJD को रिजेक्ट, सामने आए बड़े कारण

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में सबसे ज्यादा चर्चा तेज प्रताप यादव और उनकी नई पार्टी JJD की रही. लालू यादव के बड़े बेटे ने अपनी राजनीतिक पहचान अलग बनाने के लिए नया दल बनाया था. उम्मीद थी कि महुआ से तेज प्रताप बड़ा धमाका करेंगे. नतीजे आए तो तस्वीर पूरी तरह उलट गई. JJD एक भी सीट नहीं जीत सकी और तेज प्रताप खुद महुआ में चौथे नंबर पर रहे. वोट काउंटिंग शुरू होते ही साफ हो गया था कि उनकी पकड़ बेहद कमजोर है. अब सवाल उठ रहा है कि आखिर जनता ने तेज प्रताप और उनकी पार्टी को इतना बड़ा झटका क्यों दे दिया.

कमजोर संगठन ने बिगाड़ा खेल
JJD चुनाव से ठीक पहले बनी पार्टी है. ऐसे दल के पास न मजबूत नेटवर्क होता है न बूथ लेवल की जमीनी पकड़. किसी भी चुनाव में जीत बूथ मैनेजमेंट से मिलती है. RJD और NDA के पास सालों से मजबूत कैडर है. वहीं JJD शुरू से ही संगठन की कमी से जूझती दिखी. न महिलाओं तक पहुंच बनाने वाले मजबूत विंग थे, न युवाओं का नेटवर्क. ऐसे में वोटरों को अपनी तरफ खींच पाना मुश्किल था. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक पार्टी की ये सबसे बड़ी कमजोरी तेज प्रताप के लिए भारी पड़ गई.

परिवारिक लड़ाई ने बिखेर दिया यादव वोट
लालू परिवार की अंदरूनी खींचतान ने यादव वोट बैंक को असरदार तरीके से बांट दिया. तेजस्वी यादव और तेज प्रताप की अलग-अलग लाइन ने समुदाय में भ्रम पैदा कर दिया. पहले यादव वोट सीधे RJD के खाते में जाता था. तेज प्रताप के अलग होने से वही वोट दो हिस्सों में बंट गया. इस बिखराव का फायदा RJD, NDA और दूसरे छोटे दलों को मिला. महुआ जैसे क्षेत्र में जहां यादव वोट निर्णायक होते हैं, वहां ये बिखराव JJD के लिए बड़ा नुकसान साबित हुआ.

जनता के मन में भरोसा नहीं बना पाए तेज प्रताप
तेज प्रताप की रैलियों में भीड़ तो दिखी लेकिन वोट में नहीं बदली. लोगों को लगा कि वे अपनी छवि को लेकर ज्यादा चिंतित हैं, मुद्दों और विकास पर कम. कई मौकों पर वे खुद अपने प्रत्याशियों के नाम और सीट के मुद्दों से भी अनजान दिखे. इससे जनता के बीच ये मैसेज गया कि तेज प्रताप गंभीर नेता नहीं हैं. बिहार का वोटर भावनात्मक अपील तो समझता है पर विकास की बात भी चाहता है. यहां वे जनता का भरोसा नहीं जीत सके.

स्थानीय समीकरण में पिछड़ गए तेज प्रताप
महुआ में सिर्फ परिवार का नाम चुनाव नहीं जिताता. यहां कास्ट बैलेंस, क्षेत्रीय नेता की छवि और गठबंधन समर्थन अहम होते हैं. इस बार RJD, NDA और एलजेपी ने लोकल वोटरों को अच्छी तरह साध लिया. AIMIM और एलजेपी (रामविलास) ने भी कुछ हिस्से में वोट काटे. यादव वोट कई जगह बंट गया. ऐसे में तेज प्रताप को आगे बढ़ने का मौका ही नहीं मिला. शुरुआती राउंड में ही वे तीसरे-चौथे स्थान पर चले गए. बता दें कि तेज प्रताप की ये हार आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति के लिए बड़ा संकेत है. नई पार्टी बनाना आसान है लेकिन जनता का भरोसा जीतना वर्षों की मेहनत मांगता है. महुआ के नतीजों ने साफ कर दिया कि सिर्फ नाम नहीं, काम और पकड़ ही जीत दिलाती है।

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